समदोष:समाग्निच्श्र समधातुमलक्रिय: प्रसन्नात्मेन्द्रियमना: स्वस्थ इत्यभिधीयते॥ (सुश्रुत )
Ayurveda the saga of preventive medicine
शरीरेन्द्रिय सत्वात्मसंयोगो धारि जीवितम् नित्यगश्चानुबन्धश्च पर्यायैरायुरुच्यते ।
(च ० सु ०१/४२ )
शरीरेन्द्रिय सत्वात्मसंयोगो धारि जीवितम् नित्यगश्चानुबन्धश्च पर्यायैरायुरुच्यते ।
(च ० सु ०१/४२ )
शरीर ,इन्द्रिय ,मन और आत्मा संयोग आयु कहते है इन चारो परस्पर धारण करने के कारण धारी ,जीवन लक्षण के कारण -जीवित ,नित्य प्रतिक्षण वृद्धि प्राप्त होते रहने कारण -नित्यग तथा पर (सूक्ष्म ) शरीर का ऊपर( स्थूल ) शरीर में सम्बन्ध कराने के कारण को आयु अनुबंध भी कहते है |
तस्य आयुष: पूर्णतमो वेदो वेदविदा मत :| (च ० सु ०१/४३ )
Ayurveda the saga of preventive medicine
सत्वमात्मा शरीरं च त्रयमेतत त्रिदण्डवत |
लोकसिस्तष्ठति संयोग सर्वं प्रतिष्ठतम | |
( च ० सू ० १/४५ )
मन,आत्मा और शरीरये तीनो त्रिदण्ड के सामान जीवन आधार स्तम्भ है ये तीनो के संयोग से इस लोक की स्थिति है और में सब कुछ प्रतिष्ठित है |
समदोष:समाग्निच्श्र समधातुमलक्रिय: प्रसन्नात्मेन्द्रियमना: स्वस्थ इत्यभिधीयते॥ (सुश्रुत )
शरीर मन : स्वास्थय लक्षण -जिसके (सत्वादिगुण तथा वातादि )दोष ,(जठर तथा काय की )अग्नि ,(रसादिसप्त )धातु (पुरषादि )मल इनकी क्रियाएँ सम हो तथा जिसकी आत्मा ,इन्द्रियाँ तथा मन प्रसन्न हो वह स्वस्थ्य कहलाता है ।
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